Monday, March 14, 2011

आज भीगी है पलकें उनकी याद में
अक्स भी सिमट गए है अपने आप में
ओस की बुँदे ऐसी बिखरी है पत्तों पर
मानो हमारे साथ चाँद भी रोया हो उनकी

याद में

6 comments:

  1. "ओस की बुँदे ऐसी बिखरी है पत्तों पर
    मानो हमारे साथ चाँद भी रोया हो उनकी याद में"

    बहुत खूब - अति सुंदर

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  2. वाह ऋचा थोड़े से शब्दों में बहुत कुछ कह दिया .. सुन्दर रचना ... यहाँ भी पधारे ... http://unbeatableajay.blogspot.com/

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झूट

तेरे हर झूट पे यकीन करने का मन करता है  पर क्या करें तेरा हर सच बहुत कड़वा होता है