आज फिर वही ओस की बुँदे हैं , ठण्ड का वही मौसम है
वही सिरहन महसूस हुई इन हवाओं में
सब है मगर ना जाने क्यूँ दिल में एक कसक है
तेरे साथ ना होने का जाने मुझे क्यूँ गम है
तुझे भुला था दुनिया के दस्तानों में याद तेरी दिलाई
इन्ही दुनिया वालों ने कहते है ये सब को अपना
मगर कौन जाने ये किसे अजनबी भी कह दे ये
वही सिरहन महसूस हुई इन हवाओं में
सब है मगर ना जाने क्यूँ दिल में एक कसक है
तेरे साथ ना होने का जाने मुझे क्यूँ गम है
तुझे भुला था दुनिया के दस्तानों में याद तेरी दिलाई
इन्ही दुनिया वालों ने कहते है ये सब को अपना
मगर कौन जाने ये किसे अजनबी भी कह दे ये