Saturday, September 29, 2012

 बस शायद  और शायद  यूँ  ही शायद
कभी किसी  से कुछ प्यारी सी बात होना
कभी किसी भूले बिसरे दोस्त से मुलाक़ात होना
कभी  अनकही किसी की बातें समझ लेना
और कभी किसी के सब कुछ समझाने पे भी नाराज़ होना
 बस शायद  और शायद  यूँ  ही शायद

कभी किसी अजनबी के सलीके से खुश  होना
और कभी अपने ही सलीकों से नाखुश  होना
कभी चिल्ला के कह देना सब कुछ
और कभी सब कुछ सुन के भी चुप रहना
 बस शायद  और शायद  यूँ  ही शायद

कभी कुछ ना पा के भी खुश होना
और कभी सब कुछ पा के भी उदास होना
कभी यूँ बिना पंख के ही आसमान में उड़ना
और कभी पंख मिलने पे भी पेड़ की किसी डाल पे बैठना
 बस शायद  और शायद  यूँ  ही शायद

कभी एक फूल की खुशबू से ही महक उठाना
और कभी पूरा गुलदस्ता ही सूना लगना
कभी बिना बात के घंटों किसी तस्वीर को देखना
और कभी उसकी एक नज़र भी गवारा न होना
 बस शायद  और शायद  यूँ  ही शायद

कभी दूर हो के भी किसी के पास होना
और कभी किसी के पास होने पे भी दूर लगना
एक पल लगे सब कुछ अपना सा
और एक पल लगे सब कुछ अजनबी
  बस शायद  और शायद  यूँ  ही शायद

कभी यूँ ही अच्छा लगे राहों पे चलना
और कभी हर रास्ता अनजाना लगना
कभी थाम के किसी अजनबी के हाथ उससे रास्ता पार करा देना
और कभी अपने का ही रास्ते में हाथ छोड़ देना
कभी दिल पे ना लेना किसी की बात
और कभी किसी की अनकही बात को दिल से लगा लेना
सोचता हूँ कितना बदलता है इंसान अपने ही ख्यालों में और कहता है की
बस शायद ये ना कहा होता
और शायद ये ना सोचा होता
यूँ ही शायद समझ लिया होता  

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झूट

तेरे हर झूट पे यकीन करने का मन करता है  पर क्या करें तेरा हर सच बहुत कड़वा होता है