Monday, March 4, 2013

चेहरा

 कितना कुछ  बदलता है यहाँ
हर रोज़ एक नया चेहरा  मिलता है यहाँ
कहता है हर शख्स यहाँ मेरी शखशियत ही कुछ और है
मालूम हो तुम्हें तो मेरी इंसानियत ही कुछ और है
चाहता हूँ हर चेहरे पे हँसी पर वो है कुछ कीमत में दबी
उड़ने को तो तुम्हे आसमान भी नसीब है
पर बदकिस्मत है हम
हमें तो सोने को दो गज़ ज़मीन भी बदनसीब है
हमारी गरीबी पे बड़ी मासूमियत से तुम रोते हो
माँगे दो रोटी तो , काम करने की नसीहत देते हो
खुद गरीब बन के चढ़ावे चढ़ाते हो
मुरादें पूरी हुई तो हमे दान बाँटते हो
मालूम ना था एक ऐसा संसार भी होगा
जहाँ हर चेहरे पे नकाब और
हर नकाब  पे चेहरा होगा

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झूट

तेरे हर झूट पे यकीन करने का मन करता है  पर क्या करें तेरा हर सच बहुत कड़वा होता है