Monday, March 21, 2011

जिस रात की सुबह नहीं उस रात का मुसाफिर हूँ
काफ़िर तो नहीं पर इस रात की ख़ामोशी का कायल हूँ 

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झूट

तेरे हर झूट पे यकीन करने का मन करता है  पर क्या करें तेरा हर सच बहुत कड़वा होता है