Wednesday, September 21, 2011

वक़्त

आज जो मिले ख़ुशी से हम कल गम भी हमने ख़ुशी से बाटें थे
थे रेत की राहों पे और सिमटे थे साहिल की बाहों में 
आज महसूस हुई जो लहरों की चोट तो  समझ में आया 
ना हम तुम्हारे थे ना तुम हमारे थे 
ये तो वक़्त की ज़रुरत थी तुम्हारी जो तुम मेरे किनारे थे  
जो अब राहें हैं अकेली और हम भी हैं तनहा 
तो याद आता है वो लम्हा जब तुम हमारे और हम तुम्हारे थे

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झूट

तेरे हर झूट पे यकीन करने का मन करता है  पर क्या करें तेरा हर सच बहुत कड़वा होता है