कुछ तरह है लिखावट की तेरा गुमाँ हो जाता है
हमने तो तुझे भुला दिया पर
परछाइयों में तेरा गुमाँ हो जाता है
लिखे थे जो साथ अलफ़ाज़ कस्मे वादों के
उनके केवल बात होने का गुमाँ हो जाता है
यूँ तो तुझे याद नहीं करते पर
तेरी याद आने का गुमाँ हो जाता है ।
कितना कुछ बदलता है यहाँ
हर रोज़ एक नया चेहरा मिलता है यहाँ
कहता है हर शख्स यहाँ मेरी शखशियत ही कुछ और है
मालूम हो तुम्हें तो मेरी इंसानियत ही कुछ और है
चाहता हूँ हर चेहरे पे हँसी पर वो है कुछ कीमत में दबी
उड़ने को तो तुम्हे आसमान भी नसीब है
पर बदकिस्मत है हम
हमें तो सोने को दो गज़ ज़मीन भी बदनसीब है
हमारी गरीबी पे बड़ी मासूमियत से तुम रोते हो
माँगे दो रोटी तो , काम करने की नसीहत देते हो
खुद गरीब बन के चढ़ावे चढ़ाते हो
मुरादें पूरी हुई तो हमे दान बाँटते हो
मालूम ना था एक ऐसा संसार भी होगा
जहाँ हर चेहरे पे नकाब और
हर नकाब पे चेहरा होगा
Saturday, December 22, 2012
तकदीर बनाने वाले तूने कमी न की
अब किसको क्या मिला ये मुकदर की बात है
Wednesday, December 19, 2012
हूँ जननी तेरे जीवन की ना लूट मेरी आबरू को
देखा है तुझमे अक्स पिता , भाई , साथी और पुत्र का
ना तोड़ मेरे विश्वास को
माना था तूने दुर्गा , लक्ष्मी और सरस्वती का रूप मुझे
फिर भी करता है छलनी तू मेरे जिस्म की हर रूह को
सोचा था तेरे साये में रहूंगी महफूज़ हरदम
पर क्या पता था तू ही है मेरे जीवन की एक दुखद भूल
जननी हूँ तेरी ना लूट मेरी आबरू सरेआम
मानती हूँ रखवाला तुझे अपना ना तोड़ मेरा भरोसा सरेआम